भाषा के द्वारा इन्सान अपने विचारो को दुसरे के प्रति प्रकट करता है , और दूसरो के भावों - विचारो को समझाता है , अपनी भाषा को सुरक्षित रखने और काल की सीमा से निकालकर अमर बनाने की और मनीषियों को ध्यान में रखा गया है , वर्षो बाद इंसानों ने यह महसूस किया है , की उनकी भाषा में ध्वनिया प्रयुक्त हुई है , उनकी संख्या निश्चित है और ध्वनियो के योग से शब्दों का निर्माण हो सकता है , बंद में इन्ही उच्चारित ध्वनियो के लिए लिपि में अलग -अलग चिह्न बना लिए गए है , जिन्हें हम वर्ण कहते है |
हिंदी वर्णमाला स्वर और व्यंजन ( hindi grammer in hindi )
वर्णों के समूह या समुदाय को वर्णमाला कहते है , हिंदी में वर्णों की संख्या 45 है |
और वे है -
अ , आ , इ , ई, उ , ऊ, ए , ऐ , ओ , औ , अंग , अह , क , ख, ग ,घ , अड़ , च , छ , ज ,झ , इया , ट ,ठ , ड , ढ , ण , त , थ , द , ध , न , प , फ , ब , भ , ह , य , र , ल , व ,श , ष , स , ह , क्ष , त्र , ज्ञ |
sanskart वर्णमाला में एक और स्वर ऋ , है , इसे भी सम्मिलित करने पर वर्णों की संख्या 46 हो जाती है |
इसके अलावा हिंदी में अंग , अड़ , ढ , और अंग्रेजी से आगत आ , ध्वनिया प्रचलित है | हिंदी वर्णमाला को निम्न भागो में विभाजित करना चाहिए -
स्वर किसे कहते है ? स्वर कितने प्रकार के होते है
जिन ध्वनियो के उच्चारण में हवा मुख - विवर से अभाध गति से निकलती है , उन्हें स्वर कहते है |
स्वर मूल रूप से 3 प्रकार के होते है -
मूल स्वर -
वे स्वर जिनके उच्चारण में कम से कम समय लगता है , यानी की जिनके उच्चारण में अन्य स्वरों की सहायता नहीं लेनी पड़ती हो , उन्हें मूल स्वर कहते है | या फिर हस्व स्वर कहते है |
जैसे की - अ , इ , उ , ऋ |
संधि स्वर -
वे स्वर जिनके उच्चारण में मूल स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है , संधि स्वर कहते है , ये दो प्रकार के होते है -
दीर्घ स्वर -
वे स्वर जो सजातीय स्वरों ( एक ही स्थान से बोले जाने वाले स्वर ) से निर्मित हुए है , उन्हें दीर्घ स्वर कहते है | जैसे की - अ + अ = आ , इ + इ =ई , उ +उ = ऊ |
संयुक्त स्वर -
वे स्वर जो विजातीय स्वरों ( विभिन्न स्थानों से बोले जाने वाले स्वर ) के संयोग से निर्मित हो , उन्हें संयुक्त स्वर कहते है | जैसे की - अ + इ = ए , अ + ए = ऐ , अ + उ = ओ , अ + औ = औ |
लुप्त स्वर -
वे स्वर जिनके
उच्चारण में दीर्घ स्वर से
भी अधिक समय लगता है ,
उन्हें लुप्त
स्वर कहते है | जैसे
की - किसी
को पुकारने या नाटक के संवादों
में इनका प्रयोग किया जाता
है
इसके अलावा इन्ह भी देखे - कारक किसे कहते है ?
स्वरों का उच्चारण ( swar in hindi )
उच्चारण स्थान की द्रष्टि म स्वरों को 3 वर्गो में विभाजित किया जाता है , जो निम्न है -
अग्र स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्र भाग उठता है उसे अग्र स्वर कहते है | जैसे की - इ , ई , ए , ऐ आदि
मध्य स्वर -
जिन स्वरों में उच्चारण में जीभ सामान अवस्था में रहती है ,, मध्य स्वर कहते है | जैसे की - अ
पश्च स्वर -
जिन स्वरों के उच्चारण में जीभ का पश्च भाग ऊपर उठता है , उन्हें पश्च स्वर कहते है | जैसे की - आ , उ , ओ , औ |
इसके अलावा बाकी की जो ध्वनिया है वो ना तो स्वर है और ना ही व्यंजन | इन को विद्वानों ने अयोगवाह कहा है |
क्यों की बिना किसी योग किए अर्थ वहन करते है , हिंदी वर्णमाला में इनका स्थान स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले निर्धारित किया गया है |
इसके अलावा इन्हें भी देखे - संज्ञा किसे कहते है ?
व्यंजन कितने होते है | ( vyanjan kitne hote hai )
परिभाषा -जिन ध्वनियो के उच्चारण में मुख- विवर से अयाध गति से नहीं निकलती है ,, वरन उसमे पूर्ण या अपूर्ण अवरोध होता है , व्यंजन कहलाते है | दुसरे शब्दों में वे ध्वनिया जो बिना स्वरों की सहायता से उच्चारित नहीं हो सकती उन्हें व्यंजन कहते है | जैसे की - क + आ = क
मूल रूप से व्यंजन 6 प्रकार के होते है -
स्पर्श व्यंजन -
जिन ध्वनियो के उच्चारण में जीभ का कोई - ना - कोई भाग मुख के किसी - न - किसी भाग को स्पर्श करता है , स्पर्श व्यंजन कहते है | क से लेकर म तक २५ व्यंजन स्पर्श व्यंजन है | इन्हें ५ - ५ के वर्गो में विभाजित किया गया है | अत इन्हें वर्गीय व्यंजन कहते है | जैसे की - क वर्ग , च वर्घ , ट वर्ग , ट वर्ग , त वर्ग , प वर्ग |
अनुनासिक व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु नासिका मार्ग से निकलती है , अनुनासिक व्यंजन कहलाते है | जैसे की - अड़ , एन , ण , न , और म अनुनासिक व्यंजन कहते है |
अन्त स्थ व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख बहुत संकुचित हो जाता है , फिर भी वायु स्वरों की भाँती बीच से निकल जाती है , उस समय उत्पन्न होने वाली ध्वनी अन्त स्थ व्यंजन कहलाती है | जैसे की - य , र ,ल , व अन्त स्थ व्यंजन है |
उष्म व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में एक प्रकार की गर्माहट या सुसुराह्त - से प्रतीत होती है , उन्हें उष्म व्यंजन कहते है | जैसे की - श , ष , स , ह उष्म व्यंजन है |
उत्क्षिप्त व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ की उलटी जी नोक तालू को छु कर झटके से हट जाती है , उन्हें उत्क्षिप्त व्यंजन कहते है | अड़ , ढ , उत्क्षिप्त व्यंजन है |
संयुक्त व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में उन्हें व्यंजनों की सहायता लेनी पड़ती है , सयुंक्त व्यंजन कहलाते ऐ , जैसे की - क + ष = क्ष , त + र = त्र श + र = श्र
इसके अलावा इन्हें भी देखे - सर्वनाम किसे कहते है ?
व्यंजनों का उच्चारण ( vyanjan kitne prakar ke hote hai )
उच्चारण स्थं की द्रष्टि से हिंदी - व्यंजनों को 8 वर्गो में विभाजित किया जा सकता है |
कंठ्य व्यंजन -
जिन व्यंजन ध्वनियो के उच्चारण में जीभ के पिछले भाग से कोमल तालू का स्पर्श होता है , कंठस्थ ध्वनिया ( व्यंजन ) कहलाते है | क , ख , ग , घ , अड़ , कंठस्थ व्यंजन है |
तालव्य व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ का आगे वाला भाग कठोर तालू का स्पर्श करता है तालव्य व्यंजन कहते है | जैसे की - च , छ , ज , झ , और श , ष , सभी तालव्य व्यंजन है |
मुर्धन्ध्र व्यंजन -
कठोर तालू मी बीच का भाग मूर्धा कहलाता है , जब जीभ की उलटी हुई नोक का निचला भाग मूर्धा से सपर्श करता है , तो ऐसी स्थिति में उत्पन्न ध्वनी को मुर्धंध व्यंजन कहते है | जैसे की - ट , ठ , ड , ढ , ण आदि |
दन्त्य व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ की नोक उपरी दांतों को स्पर्श करता है ,उन्हें दन्त्य व्यंजन कहते है , जैसे की - त , थ , द , ध , न आदि |
ओष्ठ्य व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में दोनों ओष्ठो द्वारा श्वास का अवरोध होता है , ओष्ठ्य व्यंजन कहते है , जैसे की - प , फ , ब , भ, म आदि |
दंतोष्ठ्य व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में निचला ओष्ठ दांतों को स्पर्श करता है , दंतोष्ठ्य व्यंजन कहते है , जैसे की - व जो की एक दंतोष्ठ्य व्यंजन है |
वात्स्र्ये व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ उपरी मसुडो को स्पर्श करती है , उन्हें वात्स्र्ये व्यंजन कहते है | जैसे की - न , र , ल आदि |
काकल्ये व्यंजन -
जिन व्यंजनों के उच्चारण में अन्दर से आती हुई श्वास तेज वेग से संघर्ष करती आती है , उन्हें काकली व्यंजन कहते है | जैसे की - ह |
उपर्युक्त आठ वर्गो में विभाजन के अलावा व्यंजनों के उच्चारण के लिए निम्न बिंदु को ध्यान में रखना चाहिए -
१ . घोश्त्व के अधर पर घोष का अर्थ स्वर तंत्रियो के ध्वनी का कंपन्न होना है |
अघोष - जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वर तंत्रियो के कम्पन ण हो , अघोष व्यंजन कहलाते है | इनमे प्रत्येक वर्ग का पहला और दूसरा व्यंजन अघोष व्यंजन होता है |
घोष - जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्वर तंत्रियो के कम्पन हो , वह घोष व्यंजन होता है , इनमे प्रत्येक वर्ग का तीसरा , चोथा , और पांचवा व्यंजन वर्ण घोष व्यंजन है | जैसे की - ग , घ , अड़ , यं , झ , ढ , ण आदि |
२ - प्रांतव के आधार पर यजा प्राण का अर्थ हवा से है -
अल्प प्राण - जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से कम हवा निकले अल्प प्राण व्यंजन होते है , इनमे प्रत्येक वर्ग का पहला , तीसरा , और पांचवा व्यंजन होता है जो की अल्प प्राण होता है |
महा प्राण - जिन व्यंजनों के उच्चारण में मुख से अधिक हवा निकले महाप्राण व्यंजन होते है , इनमे प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चोथा व्यंजन वर्ण महाप्राण व्यंजन होता है |
इसके अलावा इन्हें भी देखे - संधि किसे कहते है ? संधि के प्रकार
उच्चारण की द्रष्टि से ध्वनी ( व्यंजन ) को 3 वर्गो में बांटा गया है -
संयुक्त व्यंजन -
दो या दो से ज्यादा व्यंजन परस्पर संयुक्त होकर संयुक्त व्यंजन बनाते है | जैसे की - प्राण , घ्राण , क्लांत , कलां , प्रकर्ष आदि | ये ध्वनिया ज्यादातर तत्सम शब्दों में पाई गई है |
सम्प्रत ध्वनिया -
एक ध्वनि जब दो ध्वनियो से जुडी होती है , तब सम्प्रत ध्वनी कहलाती है | जैसे की - कम्बल |
युग्मक ध्वनिया -
जब एक ही ध्वनि द्वित्व हो जाए तो यह युग्मक ध्वनी कहलाती है , जैसे की - अक्षुण , उत्फुल्ल आदि |
conclusion-
आशा करता हूँ की वर्णमाला किसे कहते है ? और स्वर और व्यंजन के बारे में सभी जानकारी के बारे में पता
चल गया होगा , लेकिन अभी भी कुछ कमी आपको दिखती है तो आगे के ब्लॉग में आपको और जानकारी देने की कोशिश करता रहूँगा |